संघ और इसका राज्य क्षेत्र | अनुच्छेद 1 से 4

संघ और इसका राज्य क्षेत्र 

अनुच्छेद 1 से 4






अनुच्छेद 1 - 

1 - भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा,
2 - राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। 
3 - भारत के राज्य क्षेत्र में,- 
                -राज्यों के राज्य क्षेत्र,
               ब - पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट। संघ राज्यक्षेत्र, और 
               स - ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएं 
                                                         समाविष्ट होंगे। 
1 - भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा,-
                                                 संविधान में  भारत के प्रभुता-संपन्न प्रजातांत्रिक गणराज्य को राज्यों का संघ घोषित किया गया है। विभाजन के पश्चात सुदृढ़ केंद्रयुक्त संघ राज्य की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक एवं प्रशासनिक दोनों ही रहा है, फिर भी संविधान को पूर्णरूपेण संघात्मक नहीं बनाया जा सका। संविधान सभा के अनुसार, संघ को फेडरेशन ( Federation )  कहना आवश्यक नहीं था। संविधान का प्रारूप प्रस्तुत करते समय प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि - यद्यपि यह संविधान संरचना की दृष्टि से फेडरल हो सकता है, किंतु कुछ निश्चित उद्देश्य से समिति ने इसे संघ ( Union ) कहा है।  
                               जैसा कि संविधान सभा में कहा गया था, यह उद्देश्य दो तथ्यों की ओर संकेत करते हैं -  पहला - अमेरिकी संघवाद की भांति भारत का संघवाद इकाइयों के बीच परस्पर करार का परिणाम नहीं है। दूसरा -  राज्यों को स्वेच्छानुसार संघ से पृथक होने का अधिकार नहीं दिया गया है। डॉक्टर अंबेडकर ने संघ शब्द का आशय इस प्रकार व्यक्त किया है - यद्यपि भारत को एक फेडरल होना था, लेकिन यह फेडरेशन राज्यों के बीच हुए करार का परिणाम नही था और न ही किसी राज्य को फेडरेशन से पृथक होने का अधिकार ही दिया गया है। फेडरेशन एक संघ ( Union ) है, क्योंकि यह कभी समाप्त नहीं होगा। यद्यपि प्रशासन की सुविधा के लिए संपूर्ण देश और उसके निवासियों को विभिन्न राज्यों में बांटा जा सकता है, फिर भी संपूर्ण देश एक है, और इसके निवासी एक ही स्रोत से उद्भूत सर्वोच्च शक्ति के अधीन रहने वाले व्यक्ति हैं। राज्यों को इस संघ से पृथक होने का कोई अधिकार नहीं है।संघ को स्थापित करने के लिए अमेरिकियों को एक  गृहयुद्ध का सहारा लेना पड़ा था, तब जाकर कहीं उनका फेडरेशन स्थाई बन सका। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे प्रारंभ से ही स्पष्ट कर देना उचित समझा है। इस संघ का नाम इंडिया अथवा भारत है, 

2 - राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। 
प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट इसके सदस्यों को राज्य कहा जाता है। 
 भारतीय राज्य क्षेत्र के 3 वर्ग हैं,-
1- राज्यों के राज्य क्षेत्र, 2 - संघ राज्य क्षेत्र,  और 3 - सरकार द्वारा अर्जित राज्य क्षेत्र 

संविधान के सातवें संशोधन अधिनियम 1956 के पूर्व संघ से संबद्ध राज्यों की चार श्रेणियां थी।  प्रथम अनुसूची में भाग (अ) , (ब) और (स) राज्य आते थे तथा अर्जित किए गए राज्य क्षेत्रों को भाग (द) में रखा गया था। इस प्रकार संविधान के सातवें संशोधन अधिनियम 1956 के प्रवर्तन के समय भाग (अ) में 10 राज्य, भाग (ब) में 8 राज्य, भाग (स) में 9 राज्य और भाग (द) में 1  राज्य सम्मिलित थे। 
             संविधान संशोधन अधिनियम 1956 में उपर्युक्त तीन वर्गों को समाप्त कर दिया गया और संघ के अधीन सभी राज्यों को राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के द्वारा एक ही स्तर पर प्रदान कर दिया गया। इस अधिनियम ने राज्यों की उक्त चार श्रेणियों को समाप्त कर राज्यों को केवल दो श्रेणियों में ही रखा। वर्तमान में 




भारत के राज्य क्षेत्र (प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट राज्य) निम्नलिखित हैं।

 राज्य -  (1) आंध्र प्रदेश, (2) असम, (3) बिहार, (4) गुजरात, (5) केरल, (6) मध्य प्रदेश, (6) तमिलनाडु, (7) महाराष्ट्र, (8) कर्नाटक, (9) उड़ीसा, (10) पंजाब, (11) राजस्थान, (12) उत्तर प्रदेश, (13) पश्चिम बंगाल, (14) जम्मू और कश्मीर, (15) नागालैंड, (16) हरियाणा, (17) हिमाचल प्रदेश, (18) मणिपुर, (19) त्रिपुरा, (20) मेघालय, (21) सिक्किम, (22)  मिजोरम, (23) अरुणाचल प्रदेश, (24) गोवा, (25) छत्तीसगढ़, (26) उत्तराखंड और (27) झारखण्ड   
संघ राज्य-क्षेत्र -  (1) दिल्ली, (2) अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह, (3) लक्षदीप, (4) दादर और नगर हवेली,  (5) पांडिचेरी, (6) दमन और दीव, (7) चंडीगढ़, 
संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी प्रशासक द्वारा किया जाएगा, जब तक कि सांसद विधि द्वारा कोई अन्य व्यवस्था न कर दे। राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को किसी बगल के संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस प्रकार नियुक्त प्रशासक के रूप में राज्यपाल अपने कृत्यों का प्रयोग अपनी मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से प्रयोग करेगा (अनुच्छेद 239)
                      संघ राज्य क्षेत्र पदावली के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा किसी समय अर्जित राज क्षेत्र सम्मिलित है। किसी देश द्वारा किसी अन्य राज्य क्षेत्र की अभिप्राप्ति की सामान्य रीतियां,  अर्पण, दखल, पराभव, अभिप्राप्ति, और भोगाधिकार है। भारत सरकार द्वारा अर्जित विदेशी राज्यक्षेत्र संघ में अनुच्छेद 2 के अंतर्गत नए राज्य के रूप में गठित किया जा सकता है, अथवा अनुच्छेद 3(अ)  या अनुच्छेद 3(ब) के अंतर्गत  किसी वर्तमान राज्य में सन्निविष्ट किया जा सकता है। 

अनुच्छेद 2 - 

नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना -
                 संसद विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी। 
संघ में नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना - 
                               अनुच्छेद 2 के अंतर्गत  संसद ऐसे निबंधनों और शर्तों के साथ जिन्हे वह उचित समझे, संघ मे नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना कर सकती है। इस प्रकार अनुच्छेद 2 के अधीन संसद को दो प्रकार की शक्ति प्राप्त है, प्रथम- संघ में नए राज्यों को शामिल करने की शक्ति, और द्वितीय- नए राज्यों को स्थापित करने की शक्ति। संसद की पहली शक्ति का संबंध नए राज्यों से है, जो पहले से ही विद्यमान हैं, और दूसरी शक्ति  उन राज्यों से संबंधित है, जो भविष्य में स्थापित या अर्जित किए जा सकते हैं। 
                             यह ध्यान देने योग्य  बात है कि, नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना ऐसे निबंधनों और शर्तों के अनुसार होगी, जिन्हें संसद उचित समझे। यहां पुनः हमारा संविधान अमेरिका और आस्ट्रेलिया के संविधानों में अंतर रखता है। उक्त दोनों संविधानों में राज्यों की समानता का सिद्धांत अपनाया गया है। अमेरिका में प्रत्येक राज्य सीनेट के लिए समान संख्या में अपने प्रतिनिधि भेजता है, जिनकी संख्या दो होती है। संघ में काग्रेस द्वारा शामिल किए गए नए राज्यों के विषय में भी समानता का सिद्धांत लागू होता है। राज्यों के विधान-मंडल और साथ ही साथ काग्रेस की सम्मति के बिना  संघ के अधीन राज्यों की सीमाओं में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। 
                               यह पहले ही बताया जा चुका है कि अमेरिकी फेडरेशन विभिन्न स्वतंत्र राज्यों के बीच हुए करार का परिणाम है, इसलिए राज्यों के विधान मंडलों की सहमति के बिना करार में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। परन्तु भारतीय फेडरेशन स्वतंत्र राज्यों के बीच हुए करार का परिणाम नहीं है। भारतीय संघ में शामिल होने वाली इकाइयां उस अर्थ में प्रभुता-संपन्न और स्वतंत्र नहीं थी, जिस अर्थ में अमेरिकी फेडरेशन के पहले उसके उपनिवेश थे। संविधान लागू होने के समय अथवा उसके पश्चात के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत स्थापित किसी वर्तमान नए राज्य को भारतीय संघ में शामिल किए जाने पर संविधान द्वारा उन्हें एक स्तर प्रदान नहीं किया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के अंतर्गत संसद को ऐसी शर्तों एवं दशाओं के अधीन नए राज्यों को भारतीय संघ में शामिल करने और स्थापित करने की पूरी छूट है, जिसे वह उचित समझे। 
                                    किसी नए राज्य को स्वीकृत  करने या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने के पश्चात, उसे प्रभावी बनाने के लिए संसद सामान्य बहुमत द्वारा संविधान में आवश्यक परिवर्तन कर सकती है। उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए संसद द्वारा पारित की गई कोई भी विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए संविधान का संशोधन नहीं सकती जाएगी। (अनुच्छेद-4) 


अनुच्छेद 3 -

 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन,-  
संसद विधि द्वारा
- किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी। 
- किसी राज्य का क्षेत्र  बढ़ा सकेगी,
-  किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी:
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी।
  - किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी
 परंतु इस प्रयोजन के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना और जहां विधेयक में अंतर्विष्ट  प्रस्तावना का प्रभाव राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है, वहां जब तक उस राज्य के विधान मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाएं या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट किए जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं कर दिया गया है और इस प्रकार विनिर्दिष्ट या अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो गई है, संसद के किसी सदन में पुरः स्थापित नहीं किया जाएगा
स्पष्टीकरण 1 -  इस अनुच्छेद के खंड क  से खंड ङ  में  राज्य के अंतर्गत संघ-राज्य-क्षेत्र है, किंतु परंतुक में राज्य के अंतर्गत संघ-राज्य-क्षेत्र नहीं है,
स्पष्टीकरण 2 -  खंड क द्वारा संसद को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ-राज्य-क्षेत्र के किसी भाग को, किसी अन्य राज्य  या संघ-राज्य-क्षेत्र के साथ मिलाकर, नए राज्य या संघ-राज्य-क्षेत्र का निर्माण करना है। 

नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों का परिवर्तन - 

                        अनुच्छेद 3 के अंतर्गत संसद को नए राज्यों की स्थापना एवं वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, या नामों में परिवर्तन करने की शक्ति प्राप्त है। अनुच्छेद 3 के अधीन नए राज्यों की स्थापना निम्नलिखित रीतियों द्वारा की जा सकती है
1 - किसी वर्तमान राज्य से उसका प्रदेश अलग करके, अथवा,
2 -  दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर, अथवा,
3 - दो राज्यों के भागों को मिलाकर, अथवा,
4 - किसी प्रदेश को किसी राज्य के साथ मिलाकर 
           संसद, अनुच्छेद 3 के अधीन, किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकती है, किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकती है, किसी राज्य की सीमाओं को बदल सकती है तथा किसी राज्य के नाम को बदल सकती है। अनुच्छेद 3 के अंतर्गत नए राज्यों की स्थापना वर्तमान राज्यों के भागों को मिलाकर की जा सकती है, जबकि अनुच्छेद 2 के अंतर्गत नए राज्यों की स्थापना, नए राज्य क्षेत्रों को अर्जित करके की जा सकती है। अनुच्छेद 3 में प्रयुक्त राज्य शब्द के अंतर्गत संघ राज्य क्षेत्र भी सम्मिलित है। 
               इस प्रकार भारतीय संविधान राज्यों के क्षेत्रों और सीमाओं को, बिना उनकी सहमति एवं सम्मति के, परिवर्तित करने का अधिकार संसद को प्रदान करता है। संसद सामान्य बहुमत से कानून बनाकर नए राज्यों की स्थापना कर सकती है और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं और नामों में परिवर्तन कर सकती है। इस प्रकार के  कानून बनाने की निम्नलिखित शर्तें हैं,-
प्रथम- किसी नए राज्य के निर्माण या वर्तमान राज्यों की सीमाओं या नामों में परिवर्तन करने के लिए कोई भी विधेयक बिना राष्ट्रपति की सिफारिश के संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। 
द्वितीय- यदि विधेयक द्वारा किसी भी राज्य के क्षेत्र, सीमा और नाम में परिवर्तन प्रस्तावित है तो, राष्ट्रपति उक्त राज्य के विधान-मंडल को विधेयक विचारार्थ भेजेगा। राज्य के विधान-मंडल को राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय के अंदर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए विधेयक को वापस कर देना चाहिए। किंतु जम्मू तथा कश्मीर राज्य-क्षेत्र को घटाने-बढ़ाने या उसके नाम या सीमा में परिवर्तन करने वाला विधेयक उस राज्य के विधान-मंडल की सम्मति के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति उपर्युक्त अवधि को बढ़ा भी सकता है। यदि राज्य विधान-मंडल, जिसको कि विधेयक भेजा गया, इस प्रकार निर्धारित या बढी हुई अवधि के भीतर विधेयक पर अपने विचार व्यक्त नहीं करता, तो, राष्ट्रपति विधेयक को संसद में प्रस्तुत कर सकता है। यदि निर्धारित या बढी हुई अवधि के अंदर राज्य विधानमंडल अपना विचार उस विधेयक पर व्यक्त कर देता है, तो भी, संसद राज्य विधान-मंडल के विचारों को स्वीकार करने या उसके अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है। भविष्य में किसी भी समय प्रस्तावित और स्वीकृत विधेयक में संशोधन के लिए राज्य विधान-मंडल को नए सिरे से निर्देश देना आवश्यक नहीं है। 
                            इस प्रकार ये अनुच्छेद संविधान की नम्यता  की ओर संकेत करते हैं। एक सामान्य बहुमत अथवा सामान्य संविधान प्रक्रिया द्वारा संसद एक नए राज्य का निर्माण कर सकती है, या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है। इस प्रकार भारत का राजनीतिक-भौगोलिक मानचित्र भी बदल सकती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान में प्रांतों का अस्तित्व ही केंद्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर है। यद्यपि यह व्यवस्था संघीय संविधान की परंपरा के सर्वथा विपरीत है, किंतु ऐसे उपबंधों को संविधान में समाविष्ट करने के अनेक कारण हैं। 

भारतीय राज्य-क्षेत्र का अध्यर्पण - 

        संसद कानून द्वारा किसी राज्य के क्षेत्र में वृद्धि या कमी कर सकती है। किसी राज्य के क्षेत्र में कमी, उस राज्य के क्षेत्र को दूसरे राज्य में मिलाकर की जा सकती है। संसद किसी नए राज्य के निर्माण या किसी अन्य राज्य के क्षेत्र में विस्तार करने के लिए एक राज्य के क्षेत्र को ले सकती है, अर्थात संपूर्ण राज्य को ही समाप्त कर सकती है। प्रश्न यह है कि, क्या संसद अपनी इस शक्ति के अंतर्गत किसी भारतीय भू-भाग को एक विदेशी राज्य को दे सकती है ? 
 अनुच्छेद 143 के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा यह प्रश्न भारत के उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किया गया था। इस मामले के तथ्य इस प्रकार हैं -  भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ सीमा संबंधी विवादों को निपटाने के लिए सन 1958 में एक करार हुआ। इस करार के अनुसार, एक तो बेरुबारी संघ को भारत द्वारा पाकिस्तान को प्रदान किया जाना था और कूच-बिहार का परिवृत्त, प्रदेश की अदला-बदली से संबंधित था। जब केंद्रीय सरकार ने उस समझौते को कार्यान्वित करने का निश्चय किया, तो पाकिस्तान को प्रस्तावित क्षेत्र के हस्तांतरण के विरुद्ध शक्तिशाली जन आंदोलन आरंभ हो गया। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143  के अंतर्गत मामले को उच्चतम न्यायालय को उसके निर्णय के लिए सौंप दिया। जिन प्रश्नों के विषय में सलाह देने का निर्देश दिया गया था, निम्नलिखित हैं - 
1 - बेरूबारी संघ से संबंधित करार को पूरा करने के लिए क्या कोई संवैधानिक कार्यवाही आवश्यक है ?, और
2 - यदि ऐसा है तो, क्या अनुच्छेद 3 के अंतर्गत संसद का कोई ऐसा कानून है, जो इसके लिए पर्याप्त होगा, अथवा, अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान में संशोधन आवश्यक है, अथवा दोनों आवश्यक है ? 
                  उच्चतम न्यायालय ने भारत सरकार के इस तर्क को अस्वीकृत कर दिया कि, करार का उद्देश्य भारत की सही सीमा के निर्धारण के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। इसलिए इसलिए इसको पूरा करने के लिए किसी भारतीय राज्य क्षेत्र को हस्तांतरित करने का प्रश्न ही नहीं था, और करार का संबंध उस क्षेत्र से था, जो पाकिस्तान का ही था। अतः उसका अर्पण कार्यकारिणी शक्ति के प्रयोग द्वारा ही किया जा सकता है। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि हस्तांतरण करार अनुसूची में सम्मिलित राज्य-क्षेत्र के अर्पण से संबंधित है, और यह कार्य संसदीय विधायन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। अनुच्छेद 3 (ग) के अंतर्गत संसद के किसी राज्य के क्षेत्र में कमी करने की शक्ति का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि वह किसी भारतीय क्षेत्र को विदेशी राज्य को अर्पित कर दे। न्यायालय ने कहा कि  बेरुबारी-करार एक ऐसा करार है, जो भारतीय क्षेत्र को एक विदेशी सरकार को अर्पित करने के लिए किया गया है। इसको क्रियान्वित करने के लिए अनुच्छेद 3 (ग) के अंतर्गत संसद को कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। उक्त करार अनुच्छेद 368 के अंतर्गत केवल संवैधानिक संशोधन करने के पश्चात कार्यान्वित किया जा सकता है। 
                       अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 में दी गयी व्यवस्था की व्याख्या करते हुए  न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि अनुच्छेद 3 राज्यों के क्षेत्रों के अंतरित पुनर्योजन की व्यवस्था करता है। अतः किसी ऐसे करार को, जिसके अंतर्गत किसी भारतीय भाग को विदेशी सरकार को अध्यर्पित  किया जाना प्रस्तावित है, केवल अनुच्छेद 3 के अंतर्गत एक सामान्य कानून बनाकर क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। इसके लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक है। 
            इसका तात्पर्य यह नहीं है कि, सरकार को अपने राज्य क्षेत्र के अध्यर्पण  पर करने या अर्जित करने की शक्ति नहीं है। नए भू-भाग को अर्जित करने और अपने भू-भाग का अध्यर्पण करने की शक्ति संप्रभुता का आवश्यक भाग है। भारत एक संप्रभुता-संपन्न देश है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय विधि के अधीन उसे भू-भाग अर्पित करने और अर्जित करने की शक्ति प्राप्त है। 
                इस  प्रकार उच्चतम न्यायालय के परामर्श को मानकर भारत और पाकिस्तान की सरकार के बीच हुए करार को कार्यान्वित करने के लिए संविधान का  9वां संशोधन संशोधन अधिनियम 1960 पारित किया गया। 
             परन्तु, सीमा विवाद को किसी अभिकरण को सौंपने के लिए किए गए करार को प्रवर्तित करने के लिए संसदीय विधान की आवश्यकता नहीं होती है। मगन भाई बनाम  भारत संघ के मामले में भारत और पाकिस्तान के बीच कच्छ क्षेत्र में सीमाओं के समायोजन के प्रश्न को एक अंतरराष्ट्रीय अभिकरण को सौपने के लिए एक करार किया गया था। सरकार बिना कानून बनाए इस करार को कार्यान्वित करना चाहती थी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि, सीमा विवाद के अभिकरण को सौंपने के लिए किए गए करार से भारत के किसी भू-भाग का किसी विदेशी राज्य को अध्यर्पण नहीं था। अतः इसके कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसका कार्यान्यवन  सरकार अपने कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग से कर सकती ह।  

अनुच्छेद 4 - 

पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, अनुषांगिक और पारिणामिक  विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां -

1 - अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे, जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों, तथा ऐसे अनुपूरक, अनुषांगिक और पारिणामिक उपबंध भी, (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में, और विधान-मंडल या विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध है) अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे। 
 2 - पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी 



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