भारत के संविधान की विशेषतायें
विश्व का सबसे विशाल और विस्तृत संविधान -
भारत के मूल संविधान में 395 अनुच्छेद और 9 अनुसूचियां है जिन्हें 22 भागों में विभाजित किया गया है। सर आईवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को विश्व का सबसे विशालतम और विस्तृत संविधान बताया है। भारतीय संविधान की इस विशालता के कारण निम्नलिखित हैं-
1 - भारतीय संविधान निर्मातागण विश्व के सभी संविधानों से अनुभव प्राप्त व्यक्ति थे और उन्हें संविधान के संचालन में आई अनेक कठिनाइयों के बारे में भी ज्ञान था। संविधान के अबाध संचालन के लिए संविधान निर्माताओं ने अपने ज्ञान का भरपूर लाभ उठाया और विश्व की सभी संविधानों की अच्छी बातों को भारतीय संविधान में समावेश किया। जैसे - आयरलैंड के संविधान से - आपात उपबंध, ब्रिटेन के संविधान से - संसदीय प्रणाली, और अमेरिका के संविधान से - मूल अधिकार आदि।
2 - भारत अनेक राज्यों से मिलकर बना एक संघ है इसलिए इन राज्यों के लिए शासन व्यवस्था इत्यादि के लिए नियमों और कानूनों का होना आवश्यक था। अमेरिका में जिस प्रकार राज्यों को स्वयं अपना संविधान निर्माण करने का अधिकार है, भारत के संविधान में राज्यों के लिए इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। भारतीय संघ में राज्यों की रचना, उनकी शक्तियों आदि से संबंधित व्यवस्था संविधान में ही निहित कर दी गई है। केंद्रीय तथा प्रांतीय दोनों सरकारों की बनावट एवं उनकी शक्तियों का वर्णन एक ही संविधान में होने की वजह से भारत का संविधान बहुत बड़ा हो गया है।
3 - भारत बहुभाषी लोगों, अनेक धर्मों को मानने वाले, तथा विशेष परिस्थितियों में रहने वाले लोगों, जैसे - अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जातियों का देश है। इन सब समस्याओं से संबंधित प्रावधानों का संविधान में निहित किया जाना अति आवश्यक था, इसलिए भौगोलिक समस्याओं ने भी भारतीय संविधान को बड़ा बनाने में अधिक योगदान दिया।
4 - भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के अलावा राज्य के नीति निदेशक तत्वों का भी विशाल वर्णन है। इन अधिकारों का अतिक्रमण होने पर नागरिकों को न्यायालय में मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं दिया गया है फिर भी संविधान की प्रस्तावना में निहित एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की दृष्टि से संविधान निर्माताओं ने इसको संविधान में समाविष्ट करना उचित समझा। इसके अतिरिक्त संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान में न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, राजभाषा आयोग, निर्वाचन आयोग आदि अनेक स्वाधीन संस्थाओं के संगठन एवं कार्य प्रणाली से संबंधित विस्तृत एवं स्पष्ट प्रावधान किए हैं। इन सब के बारे विस्तृत प्रावधानों को रखने के संबंध में संविधान निर्माताओं ने कहा है कि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो प्रजातांत्रिक प्रणाली समुचित ढंग से कार्य नहीं कर सकती थी।
संविधान की विशालता के समर्थक ऐसा मानते हैं कि संविधान जितना ही विशाल होगा उतनी उसमें अस्पष्टता आएगी। संविधान में अस्पष्टता लाने के लिए संविधान का विशाल होना आवश्यक है। संविधान जितना स्पष्ट होगा, वह जनता को उतना ही ग्राह्य और बोधगम्य हो सकेगा। दूसरी तरफ यह कहा जाता है कि संविधान की विशालता संविधान का एक दुर्गुण है। संविधान की विशालता भ्रम तथा झगड़ों को उत्पन्न करती है। कुछ लोगों ने भारतीय संविधान को वकीलों का स्वर्ग नामक संज्ञा दी है.
संविधान निर्माताओं ने केवल देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर संविधान को विशाल बनाया है। फिर भी देश के सर्वोच्च कानून को संक्षिप्त का सरल होना चाहिए ताकि इसे देश का प्रत्येक नागरिक पढ़ सके, समझ सके, और उसपर आचरण कर सके .
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