सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता किस अनुच्छेद में वर्णित है और इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या होगें | In which article is the freedom of assembly and conference described and what would be the appropriate restrictions on this freedom?

 सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता:



         इस लेख में आपको सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता क्या है? सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के उदाहरण, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के विपक्ष में, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता किस अनुच्छेद में वर्णित है, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है, आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या होगें, आर्टिकल 19 में कितने प्रकार की स्वतंत्रता है, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता क्या है? सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के उदाहरण, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के विपक्ष में, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता किस अनुच्छेद में वर्णित है, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है, आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या होगें, आर्टिकल 19 में कितने प्रकार की स्वतंत्रता है आदि ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब आपको मिलेंगे।         अनुच्छेद 19 (1) (ख) भारतीय नागरिकों को शान्तिपूर्वक बिना हथियार के सभा करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। इसमें सार्वजनिक सम्मेलनों, सभाओं एवं जुलूसों का अधिकार भी सम्मिलित है । यह अधिकार प्रजातांत्रिक व्यवस्था का स्वाभाविक परिणाम है। वस्तुतः यह स्वतन्त्रता वाक् और अभिव्यक्ति का ही अंग है। जब तक सभा करने का अधिकार नहीं होगा, व्यक्तियों को अपने विचारों के आदान-प्रदान करने का अवसर नहीं प्राप्त होगा। इंग्लैण्ड में भी यह अधिकार वाक् स्वतन्त्रता का ही भंग माना जाता है। अन्य अधिकारों की भाँति इस अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। इस अधिकार पर निम्नलिखित तीन आधारों पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं- 1- सभा शान्तिपूर्ण होनी चाहिये। 2- सभा बिना हथियार के होनी चाहिये। 3- अनु० 19 के खंड (3) के अन्तर्गत राज्य इस लोक व्यवस्था के हित में युक्तियुक्त प्रति बन्ध लगा सकता है। अनुच्छेद 19 (1) (क) इस विषय से सम्बन्धित वर्तमान विधियों की रक्षा करता है, बशर्ते इनके अन्तर्गत लगाये गये प्रतिबन्ध लोक-हित में तथा युक्तिसंगत हों। यदि कोई सभा हिंसास्मक या जनशान्ति को भंग करने वाली है तो अनु० 19 (1) (ख) की सुरक्षा उसे नहीं प्राप्त होगी। इस प्रकार की सभाओं, सम्मेलनों, जुलूसों को गैरकानूनी घोषित किया जा सकता है और उसे भंग करने का आदेश दिया जा सकता है। भारतीय दंड विधान के अध्याय 8 में उन शर्तों का उल्लेख है जिनकी मौजूदगी में कोई सभा गैरकानूनी हो जाती है। दंड विधान की धारा 141 के अनुसार 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों की सभा अवैध हो जाती है, यदि उस सभा को संगठित करने वाले व्यक्तियों का समान उद्देश्य - A- किसी कानून या कानूनी आदेशिका के निष्पादन का विरोध करना हो, B- कोई शरारत या अतिचार करना हो, C- बलपूर्वक किसी की सम्पत्ति पर कब्जा करना हो, D- किसी व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिए बाध्य करना, जिसे करने के लिए वह कानूनी रूप से बाध्य नहीं है या उसे ऐसे कार्य न करने के लिए बाध्य करना जिसे करने के लिए वह कानूनी तौर से बाध्य है, E- सरकार के प्रति आपराधिक बल प्रयोग की धमकी देना या किसी सरकारी अधिकारी को इस प्रकार की धमकी देना हो।         एक सभा इकट्ठा होने के बाद अवैध रूप धारण कर सकती है, यदि यह हिंसात्मक रूप धारण कर ले या उससे लोक व्यवस्था के भंग होने की आशंका हो। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 127 के अन्तर्गत ऐसी सभा को भंग करने का आदेश दिया जा सकता है, यदि उससे जनशांति भंग होने की आशंका हो। दण्ड विधान की धारा 151, उक्त सभा को भंग होने के लिए दिये गये विधिपूर्ण आदेश की अवज्ञा करने को एक अपराध घोषित करती है। इसी प्रकार दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 मजिस्ट्रेट को यह शक्ति देती है कि वह किसी भी व्यक्ति से जिससे शांतिभंग किये जाने की आशंका हो, शांति बनाये रखने की जमानत ले सकता है। धारा 144 के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट किसी सभा, सम्मेलन करने या जुलूस निकालने को मना कर सकता है, यदि सामान्य जनता के जीवन, स्वास्थ्य, सुरक्षा को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने की आशंका हो या लोक-शांति भंग होने या बलवा या हंगामा होने की संभावना हो। पुलिस ऐक्ट, 1861 के अधीन पुलिस अधिकारी सभाओं और जुलूसों को संचालित करने के ढंग, समय, स्थान और उनके जाने के मार्गों के बारे में लोक-व्यवस्था के हित में उचित निर्देश दे सकता है। इस ऐक्ट की धारा 30 के अधीन किसी व्यक्ति को जुलूस निकालने के पहले पुलिस अधिकारी से पूर्व अनुज्ञा लेना आवश्यक है। कोई ऐसा कानून जो मजिट्रेट को किसी सभा के करने की अनुज्ञा को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार प्रदान करता है या ऐसा कानून जो बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सार्वजनिक जुलूस निकालने की अनुमति नहीं देता, न्यायालयों द्वारा वैध घोषित किया गया है। अमेरिकन संविधान की भांति भारतीय संविधान भी लोगों को शस्त्र रखने या उसे सभा में वर्तमान ले जाने का कोई सामान्य अधिकार प्रदान नहीं करता। भारत में, वर्तमान शस्त्र अधिनियम  जुलूसों या बिना लाइसेन्स के खतरनाक शस्त्रों को रखने या ले जाने को मना करता है। सेडिशस मीटिंग ऐक्ट, 1911 ऐसे सार्वजनिक सम्मेलनों को, जो राजद्रोह को उकसाते हैं या जन-शांति को भंग करते हैं, का निषेध करता है। राज्य सरकार किसी प्रान्त या उसके किसी भाग को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर सकती है। इसके पश्चात् इस क्षेत्र में कोई भी सार्वजनिक सभा या सम्मेलन या किसी ऐसे विषय पर विचार-विमर्श या ऐसे विषयों से सम्बन्धित लेख या प्रकाशन का प्रदर्शन या प्रचार नहीं किया जा सकता है जो लोक-अव्यवस्था फैलाता या उकसाता हो जब तक कि ऐसी सभा करने की सूचना जिलाधीश या पुलिस कमिश्नर को तीन दिन पूर्व न दे दी गयी हो और उनसे सभा करने की लिखित रूप में अनुमति न प्राप्त कर ली गयी हो।उपर्युक्त सभी उपबन्ध अनुच्छेद 19 के खंड (3) के अन्तर्गत सभा करने की स्वतन्त्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध के रूप में मान्य ठहराये गये हैं।

FAQ:

1- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता क्या है? 2- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के उदाहरण, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के विपक्ष में, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता किस अनुच्छेद में वर्णित है? 3- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है? 4- आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या होगें? 5- आर्टिकल 19 में कितने प्रकार की स्वतंत्रता है? 6- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता क्या है? 7- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के उदाहरण, 8- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता के विपक्ष में, सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता किस अनुच्छेद में वर्णित है? 9- सभा एवं सम्मेलन की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है, आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध क्या होगें? 10- आर्टिकल 19 में कितने प्रकार की स्वतंत्रता है?

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