भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम-1947
भारतीय नेताओं की मांगो को न मानाने के बाद क्रिप्स मिशन असफल हो गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय लोगों की माँगे न मानाने के कारण भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने अंग्रेजों भारत छोडो का प्रस्ताव पास किया। अभी तक भारतीय लोगों ने आंदोलन का स्वरुप अहिँसात्मक ही रखा था परन्तु ब्रिटिश सरकार ने दमन-नीति का अनुपालन करते हुए सभी भारतीय नेताओं को जेल में बंद कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने स्वतन्त्रता के इस आंदोलन का दमन करने की हर संभव कोशिश की। ब्रिटिश सरकार की इस दमन-नीति के कारण पुरे देश में हिँसा फ़ैल गयी। इसके परिणामस्वरूप भारतीयों को हिँसा का मार्ग ग्रहण करना पड़ा तथा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पुरे भारत में जन-आंदोलन ने विशाल रूप ले लिया। भारतीय लोगों द्वारा आज़ादी के लिए किया गया सन 1942 का यह जन-आंदोलन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सन 1942 के इस जन-अनोलन ने यह प्रमाणित कर दिया कि समय आने पर भारतीय लोग हिंसा के आधार पर भी ब्रिटिश सरकार को स्वतन्त्रता प्रदान करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इस जन-आंदोलन से भारतीय लोगों के मन से अंग्रेजी सरकार की गोलियों का भय जाता रहा, यद्यपि इस आंदोलन से आज़ादी हासिल करने का अंतिम उद्देश्य पूरा न हो सका, परन्तु इस जन-आंदोलन ने भारतीय लोगों को उत्साही बना ही दिया। भारतीयों के इस अदम्य साहस और उत्साह ने ब्रिटिश सरकार की जड़ों को हिला कर रख दिया। भारतीयों द्वारा किये गए इस जन-आंदोलन के कारण भारत के संविधान के सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श करने के लिए एक दूसरा प्रतिनिधि मण्डल भारत भेजा। ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गये इस प्रतिनिधि मण्डल को कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है।
कैबिनेट मिशन का भारत आगमन - मार्च. 1946 - ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा गया यह प्रतिनिधि मण्डल 24 मार्च, 1946 को भारत आया। इस प्रतिनिधि मण्डल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव), सर स्टेफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष) तथा ए.वी. अलेक्जेंडर (एडमिरैलिटी के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री) थे। इस प्रतिनिधि मण्डल ने भारत के संविधान के सम्बन्ध में जो योजना पेश की वह निम्नलिखित है -
1 - ब्रिटिश भारत एवं प्रांतों को मिलाकर भारत का एक संघ होना चाहिए और कुछ राष्ट्रीय हित के विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषय प्रांतों के क्षेत्राधिकार में रहने चाहिए।
2 - भारत पर ब्रिटिश सरकार की सम्प्रभुता समाप्त कर देनी चाहिए।
3 - भारतीय रियासतों को यह छूट होनी चाहिए कि वे संघ में सम्मिलित हों या स्वतंत्र रहें।
4 - तत्काल एक अन्तरिम सरकार की स्थापना की जानी चाहिए, जिसे भारत के सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हो
भारतीय लोगों ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों का समर्थन किया। इस प्रतिनिधि मण्डल की सिफारिशों और सुझावों के फलस्वरूप जुलाई, 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ।
भारतीय स्वतंत्रतता अधिनियम - 1947 - ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लिमेण्ट रिचर्ड एट्ली द्वारा भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने की घोषणा पर अमल करते हुये 4 जुलाई 1947 को संसद मे भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम-1947 नामक विधेयक रखा गया एवं 18 जुलाई 1947 को यह विधेयक पारित कर दिया गया। इस अधिनियम में निम्नलिखित उपबंध किये गए -
3 - दोनों अधिराज्यों की संविधान-निर्माण-सभाओं को उनके लिए संविधान बनाने का अधिकार होगा।
4 - 14 अगस्त, 1947 के बाद भारत और पाकिस्तान पर ब्रिटिश सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
5 - नए संविधान के निर्माण होने तक दोनों अधिराज्यों का प्रशासन भारत सरकार अधिनियम - 1935 के अनुसार ही चलाया जाएगा।
6 - भारत राज्य-सचिव का पद समाप्त कर उसके स्थान पर राष्ट्र-मण्डल सचिव की नियुक्ति की जाएगी।
7 - भारतीय प्रांतों से ब्रिटिश सरकार की प्रभुसत्ता समाप्त कर दी जाएगी।
इस प्रकार, 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में ब्रिटिश सत्ता को समाप्त कर भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम-1947 को लागू किया गया और अंततः भारत की 200 वर्षों पुरानी गुलामी का अंत हो गया।
भारत के संविधान का निर्माण -
भारत सरकार अधिनियम - 1947 के लागू होने तथा आज़ादी मिलने के पश्चात भारतियों के समक्ष देश के लिए एक आदर्श संविधान की रचना करने का महत्वपूर्ण कार्य सामने था। कैबिनेट मिशन की योजना के अनुसार नवम्बर, 1946 को संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया। संविधान सभा के लिए कुल 296 सदस्यों में से 211 सदस्य कांग्रेस के, 73 सदस्य मुस्लिम लीग के तथा 12सदस्यों के स्थान खाली रहे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर, प० जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प० गोविन्द बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना आज़ाद, गोपाल स्वामी आयंगर, सर एच. एस. गौड़, हृदयनाथ कुंजरू, अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर, टी, टी. कृष्णम्माचारी, लियाकत अली खां, डॉ. जयशंकर, डॉ. राधा कृष्णन, आचार्य कृपलानी, के. टी. शाह, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा आदि संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे।
भारत का भावी संविधान निर्माण करने के लिए 9 सितम्बर, 1946 को पहली बैठक संपन्न हुई। एक तरफ मुस्लिम लीग ने यह निर्णय किया था कि वह संविधान सभा की बैठक में भाग नहीं लेगी तथा दूसरी तरफ कैबिनेट मिशन की योजना के प्रतिबंधों के अधीन ही भारत की संविधान सभा को अपना कार्य करना था। हमारे संविधान निर्माताओं ने इन सभी समस्याओं से विचलित हुए बिना अपने साहस और निश्चय के बल पर निरंतर आगे बढ़ते रहे। तेजी से घूमते हुए घटनाचक्र में 3 जून 1947 को यह निर्णय हो गया कि देश का विभाजन होना है। इसके बाद मुस्लिम लीग का असहयोग महत्वहीन हो गया। 1 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता अधिनियम पारित होने के बाद कैबिनेट मिशन द्वारा लगाए गए सभी प्रतिबंध भी समाप्त हो गए। तमाम बाधाओं के बावजूद संविधान सभा की बैठकें हुईं। संविधान प्रारूप समिति ने संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया। संविधान के प्रारूप पर आठ महीने बहस, 11 अधिवेशनों, अनेक संशोधनों तथा 2 वर्ष 11 माह 18 दिन की कड़ी मेहनत के बाद 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान निर्माण का कार्य पूरा कर लिया। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को 26 नवम्बर, 1949 को ही लागू करते हुए शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया।
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