नवीन दृष्टिकोण
मूल अधिकारों की विस्तृत व्याख्या / निर्वचन | Detailed interpretation of Fundamental Rights
संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार सुभिन्न और परस्पर अनन्य अधिकार नहीं है, जिनकी पृथक-पृथक अनुच्छेदों में गारंटी की गई है (गोपालन का मामला) । ये सभी संविधान की उद्देशिका में प्रयुक्त सुसम्बद्ध युक्ति सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक के भाग हैं। उनको पृथक-पृथक नहीं देखा जा सकता है। ये सब अधिकार जो मनुष्य को एक पूर्ण मनुष्य बनाने के लिए आवश्यक हैं, इनमें शामिल हैं, भले ही उनका स्पष्ट रूप से उल्लेख ना किया गया हो या अलग-अलग अनुच्छेदों में उल्लेख किया गया हो, अतः, अधिकारों का निर्वचन करते समय इन सभी पर विचार करके निष्कर्ष निकालना चाहिए, (न्यायाधिपति श्री बेग)। किसी अधिकार को मूल-अधिकार होने के लिए यह आवश्यक नहीं की उसका किसी विशिष्ट अनुच्छेद में उल्लेख किया गया हो। किसी अनुच्छेद में उल्लिखित किए बिना भी व मूल-अधिकार माना जाएगा, यदि वह किसी विशिष्ट मूल-अधिकार का अभिन्न अंग है, अथवा उसकी मूल प्रकृति उसी अधिकार की तरह है, जिसका उल्लेख संविधान में स्पष्ट रूप से किया गया है। जैसे - अनुच्छेद 21 में विदेश भ्रमण, निशुल्क विधिक सहायता, शीघ्रतर परीक्षण या अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वाधीनता आदि मूल-अधिकार माने गए हैं।