भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस की स्वतन्त्रता | To reside and settle in any part of the territory of india

 भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में  निवास करने और बस की स्वतन्त्रता | To reside and settle in any part of the territory of india


        इस लेख में आपको भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में  निवास करने और बस की स्वतन्त्रता, भ्रमण और निवास की स्वतन्त्रता का सम्बन्ध आदि ऐसे महत्ववपूर्ण अधिकारों के सम्बन्ध में आपको जानकारी मिलेंगी।
अनुच्छेद 19 (1) (ङ) सभी नागरिकों को सम्पूर्ण भारत में बसने या आवास करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। इसके लिये उसे किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। किन्तु इस अनु० के खण्ड (5) के अन्तर्गत इस अधिकार पर राज्य जनहित या अनुसूचित जातियों के हितों में युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगा सकता है।
        यह ध्यान देने की बात है कि निवास की स्वतन्त्रता और भ्रमण की स्वतन्त्रता एक दूसरे की पूरक है और दोनों का उद्देश्य भी राष्ट्रीय एकता की स्थापना करना है। भ्रमण की स्वतन्त्रता की भाँति निवास की स्वतन्त्रता पर भी जनहित में या अनुसूचित जातियों के हित की रक्षा में प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। उदाहरणार्थ, सप्रेशन ऑफ इम्मोरल ट्रैफिक इन वीमेन ऐण्ड गर्ल्स ऐक्ट, 1950 मजिस्ट्रेट को अनैतिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को किसी विशेष स्थान से हटाने का आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट ने एक वेश्या को शहर की घनी आबादी वाले क्षेत्र से बाहर चले जाने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने इसको उसके भ्रमण एवं निवास की स्वतन्त्रता पर उचित प्रतिबन्ध माना है। इस बात का निर्णय मजिस्ट्रेट ही करेगा कि एक विशेष स्थान से एक वेश्या का निष्कासन सामान्य जनता के हित में है या नहीं। देखिये- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कौशिल्या 1 का निर्णय।
        भ्रमण एवं निवास की स्वतन्त्रता को आपात्कालीन स्थिति में भी कम या निलम्बित किया जा सकता है। फारेनर्स ऐक्ट, 1864 और 1966 के अन्तर्गत किसी भी विदेशी व्यक्ति के भ्रमण एवं निवास के अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं और उन्हें भारत से निष्कासन का आदेश भी दिया जा सकता है। इस विषय पर इब्राहीम वजीर बनाम बम्बई राज्य का निर्णय एक महत्वपूर्ण निर्णय है : इस वाद में पाकिस्तान (आगमन) नियन्त्रण अधिनियम की धारा 7 की सांविधानिकता को चुनौती दी गयी थी। इन अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा पाकिस्तान से भारत में बिना किसी अनुज्ञापत्र या परिपत्र के प्रवेश करना एक दंडनीय अपराध है। अधिनियम की धारा 7 केन्द्रीय सरकार को यह शक्ति देती है जिसके अधीन वह किसी भी व्यक्ति को, जिसमें भारत का नागरिक भी शामिल है, जिसने इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई अपराध किया है या जिसके विरुद्ध ऐसे अपराध करने का युक्तियुक्त सन्देह विद्यमान है, भारत से निकल जाने का आदेश दे सकती है। प्रार्थी बिना अनुज्ञा-पत्र के भारत में घुस आया था। उसे उक्त अधिनियम के अन्तर्गत बन्दी बनाकर देश से निष्कासित कर दिया गया। उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को इस आधार पर अवैध घोषित कर दिया कि यह नागरिकों के भारत क्षेत्र में कहीं भी बसने या निवास करने के मूल अधिकार पर अयुक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाता है। किसी नागरिक का बिना अनुज्ञापत के अपनी मातृभूमि में आना कोई ऐसा गम्भीर अपराध नहीं है जिसके आधार पर उसका निष्कासन न्यायोचित ठहराया जा सके। इसके अतिरिक्त अधिनियम के अन्तर्गत इस बात का निर्धारण कि किसी ने अपराध किया है या नहीं, सरकार के व्यक्तिनिष्ठ निर्णय पर छोड़ दिया गया है जो सरकार को स्वेच्छाचारी शक्ति प्रदान कर देता है।
        मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ के वाद में मध्य प्रदेश पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट, 1959 की धारा 3 सरकार को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह किसी व्यक्ति को ऐसे स्थान में रहने या बने रहने, जिसका उल्लेख आदेश में किया गया हो, या उस स्थान को छोड़कर प्राधिकारियों द्वारा नियत स्थान में जाकर निवास करने या बने रहने के लिये आदेश दे सकती थी। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि यह अधिनियम संविधान के अनु० 19 (1) (घ) में दिये हुए अधिकार पर अयुक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाता है, इसलिये अवैध है। अधिनियम के अन्तर्गत निष्कासित व्यक्ति को अपनी सफाई देने का युक्तियुक्त अवसर नही दिया गया था, न ही इसमें उस स्थान या क्षेत्र के विस्तार या निष्कासित व्यक्ति के निवास स्थान से उसकी दूरी आदि का स्पष्ट उल्लेख किया गया था। स्थान चयन के बारे में अन्तिम निर्णय लेने का अधिकार सरकार का था। ऐसी स्थिति में सरकार ऐसे स्थान का चयन कर सकती थी जहाँ रहने का कोई आवास न हो या जीविका का कोई साधन न हो।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Please do not enter any spam link in the comment box.