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भारतीय संविधान का विकास | सन 1858-1919 | ईस्ट इंडिया कंपनी शासन का अंत
नवंबर, सन 1919 में लार्ड कर्जन के स्थान पर लाडनू भारत का वायसराय तथा जान मार्ले को भारत का राज्य सचिव नियुक्त किया गया। जॉन मार्ले भारतीय प्रशासन में सुधारों के समर्थक थे। भारत के वायसराय लॉर्ड मिंटो ने वाइसराय जॉन मार्ले के विचारो का समर्थन किया। इसीलिए इनके द्वारा किए गए सुधारों को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से जाना जाता है।
भारतीय परिषद अधिनियम-1919 द्वारा भारतीयों को प्रशासन तथा विधेयक पारित करने, दोनों कार्यों के लिए प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। केंद्रीय विधानसभा में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गई। इनमें से लगभग 32 गैर सरकारी सदस्य होते थे। इन गैर सरकारी सदस्यों में से 27 सदस्य निर्वाचित होते थे और पांच सदस्य नामजदहोते थे। इसके लिए निर्वाचन मंडल तीन वर्गों में बाँट दिया गया था।
1 - सामान्य निर्वाचक वर्ग,
2 - वर्गीय निर्वाचक वर्ग,
3 - विशिष्ट निर्वाचक वर्ग,
प्रांतीय विधान परिषदों की सदस्य संख्या को भी बढ़ा दियागया। निर्वाचन की पद्धति केन्द्रीय विधान परिषद के निर्वाचन के समान ही थी। इस अधिनियम ने केंद्रीय विधान परिषद और प्रांतीय विधान परिषद्की शक्ति को बढ़ा दिया। विधान परिषदों के सदस्यों को बजट पर बहस करने और उन पर प्रश्न पूछने का अधिकार दे दिया गया। परन्तु इन सदस्यों को बजट पर मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। सदस्यों को लोकहित के विषय पर विवेचना करने का भी अधिकार प्रदान किया गया था। इन सब परिवर्तनों के बावजूद भी मार्ले मिंटो सुधार भारतीयों की आकांक्षाओं ( उत्तरदायी तथा प्रतिनिधिक सरकार की स्थापना )को पूरा करने में असफल हो गया। केंद्रीय विधानमंडल के सरकारी सदस्य कोई प्रश्न नहीं पूछ सकते थे, वे मतदान में सदा सरकार का ही समर्थन करते थे। गैर सरकारी सदस्य भी सरकारी सदस्यों का ही अनुसरण करते थे। परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बहुत कम थी। निर्वाचन की प्रक्रिया दोषपूर्ण थी। इस अधिनियम ने एक दोषपूर्ण,संकुचित और विभेदकारी निर्वाचन प्रक्रिया प्रदान की जिसने आगे चलकर देश का विभाजन कर दिया। मुस्लिमो को सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान करके अधिनियम ने मुसलमानों का पक्षपात किया। मुसलमान तथा हिन्दू मतदाताओं की अहर्ताएं भिन्न-भिन्न थीं, ऐसा मुस्लिमों को खुश करने के लिए किया गया था। स्त्रियों को मताधिकार नहीं प्राप्त था।
अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आंदोलन तीव्र गति से बढ़ने लगा। उसी समय विश्वपटल पर कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने भारतीयों की आंखें खोल दी। कांग्रेस ने अपना आंदोलन और तेज कर दिया। सन 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध ने जिसने भारतीयों की महत्वाकांक्षा को गति प्रदान की। अंग्रेजों ने वर्तमान व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक समझा। सन 1917 में भारत के नए राज्य सचिव मिस्टर मांटेग्यू ने भारत में और अधिक सुधारों का समर्थन किया। उन्होंने ब्रिटिश संसद में यह घोषणा की कि आने वाले समय में ब्रिटिश सरकार की नीति होगी कि प्रशासन की शाखा में भारतीयों के साहचर्य को बढ़ाया जाए ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के रूप में विभिन्न भागो में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन का विकास होता रहे। इस इस घोषणा के बाद वे भारत की राजनीतिक अवस्था की जांच करने के लिए भारत आए। उन्होंने राज प्रतिनिधि लॉर्ड चेम्सफोर्ड के साथ देशभर का दौरा किया और राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन किया। उन्होंने 1918 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की इसे मांट-फोर्ड योजना कहते हैं। इस रिपोर्ट में उन्होंने भारत में किए जाने वाले सुधारों की एक रूपरेखा प्रस्तुत की। मांट-फोर्ड रिपोर्ट के आधार पर 1919 में ब्रिटिश संसद से एक विधेयक पारित किया गया जिसे गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट 1919 कहते हैं।
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